मंगलवार, 25 मार्च 2008

चना चोर!!!!!!!

आज की व्यस्ततम जीन्दगी मे ,जहाँ लोगों के पास ख़ुद के लिए समय नही होता है ,अपने वारे मे रुक कर सोचने के लीए समय नही होता है ,भूली बिसरी यादों को ताजा करने के लिए वक्त नही होता है , वहीं कुछ यादें ऐशी होती है ,जिनके वारे मे एक बार सोचने पर ही मन प्रफ्फुलित हो उठता है, ऐशी ही यादों मे से एक याद जो शायद आपको आपका बचपन याद दिला दे

बात उन दिनों की है ,जब हम मुन्ग्वानी मे रहते थे , मुन्ग्वानी एक गाओं है ,नरसीपुर और लखनादौन के बीच मे ,जहाँ पीता जी की स्कूल मे नौकरी थी पीता जी के शिक्षक होने की वजह से गाओ मे हमारा परिवार प्रतिष्ठित था, बड़े भाई थोड़े शरारती थे ,वैसे उनकी बहुत सी शरारतों मे मैं भी शामील हुआ करता था ,लेकिन छोटा होने की वजह से डांट या मार से बच जाया करता था हम जहाँ रहते थे , हमारे घर के पीछे खेत थे ,और उस समय खेतों मे लगे थे चने भैया और भैया का एक दोस्त दोनों सुबह सुबह खेतों मे जा के चने तोड़ कर लाया करते थे ,एक दो बार उनका पाला खेत के मालीक से भी पड़ा लेकीन भैया को उन लोगों से नीपटना आने लगा था , एक दीन सुबह सुबह मेरी नींद खुली , मैंने भैया से खेत मे साथ चलने को कहा , कुछ देर नकुर करने के बाद भैया मुझे अपने साथ ले जाने को तैयार हो गए ,चूंकी उस दिन भैया का दोस्त भी नही आया था हम दोनों साथ मे एक बोरा लेकर चल पड़े हमारे घर के पीछे जो खेत था उसमे गेहूँ लगा हुआ था उस खेत के बाद अगले खेत मे चने लगे थे
भैया ने मुझसे नजर रखने को कहा और ख़ुद खेत मे घुस कर चने तोड़ने लगे , और मे खेत की मेढ़ पर खड़ा यहाँ वहाँ देख रहा था , जहाँ भैया चने तोड़ रहे थे , उससे कुछ ही दूरी पर एक कमरा था , मैं यहाँ वहाँ देख रहा था , मेरा ध्यान खेत पर या भैया पर बिल्कुल नही था, तभी उस कमरे से धोती कुरता पहने हुए ,एक अधेड़ उम्र का व्यकती भागते हुए आया और भैया को पकड़ लीया ,इससे पहले की भैया कुछ समझ पाते उस आदमी ने - हाथ भैया पर जमा दीए, और कहने लगा "चल थाने " , १२-१३ साल के लड़के के लीए थाने जाना एक बड़ा डर होता है , फीर भी भैया ने पुरी हिम्मत के साथ कहा "चल थाने ",दोनों चल पड़े थाने की ओर , मे दूर खड़े खड़े ये सब देख रहा था , मेरे कुछ समझ मे नही आरहा था की मे क्या करूं ,उस आदमी ने भैया की गदन पकड़ी हुई थी , ओर बडबडाते हुए जा रहा था ,जैसे ही उस आदमी की पकड़ ढीली पड़ी ,भैया गर्दन छुडा कर मेरे ओर भागा उस आदमी ने मेरी ओर इशारा कर के कहा "भैया पकड़ने इहे !!!!!" मुझे कुछ सम्झ्मे नही आया वो आदमी मुझसे ऐसा क्यों कह रहा है हम दोनों भागते हुए घर की तरफ़ बढे , चूंकी वो अधेड़ था ,ईसलिए हम से पीछे रह गया अब हम गेहूँ के खेत मे थे , पोधे इतने बड़े थे की हम बैठ जाने पर दीख नही रहे थे हम दोनों ने कुछ देर चैन की साँस ली ,तभी भैया ने उठकर देखा ,वो आदमी अभी भी हमारी ही ओर रहा था ,और हमसे बहुत नजदीक था कुछ दूरी पर ही घर था ,लेकिन यदीघर जाते तो पकड़े जाते और घर मे भी डांट पड़ती ,हमने रास्ता बदल दीया और रेस्ट हाऊस की तरफ़ भागे ,मुझे गेहूँ की फसल मे दोंड़ने मे दीक्कत हो रही थी , भैया ने मेरा हाथ जोर से पकड़ा और लगादी दौड़ मैं गेहूँ के पोधों के साथ साथ ऊपर नीचे होते हुए बड़े आराम से घिसट रहा था तभी एक हादसा हो गया मेरे पैर से एक चप्पल छूट कर गेहूँ के पोधों बीच कहीं खो गई ,मैं ने भैया से रुकने को कहा, उस वक्त तक भी ज्यादा उजाला नही हुआ था , मुझे कुछ साफ-साफ दीखाई नही दे रहा था ,तभी मुझे उस आदमी पास आने की आवाज़ आई , वह हमारे बहुत पास आगया था ,भैया भी बोल रहे थे जल्दी कर , मैं बहुत घबरा गयाथा .मैं ने आखरी बार हाथ घुमाया ,इश बार चप्पल मेरे हाथ मे थी, तब तक वो लगभग हमारे सामने आगया था जैसे ही चप्पल मेरे हाथ लगी मैं चील्लाया "मील गई ",मेरा एक हाथ भैया के हाथ मे ही था , भैया तुरंत भागा ,मैं फीर से गेहूँ के साथ लहलहाता हुआ खेत के कीनारे तक पहुंचा अब रेस्ट हाऊस की कांटों वाली फेंसींग पार करनी थी ,चप्पलें मेरे हाथ मे थी , मैने बीना चप्पल पहने ही फेंसींग पार की जिस से मेरे पैर मे हलकी खरोंच आगई, हम थोड़ा आगे बढ़ कर रुके , इश उम्मीद मे की अब शायद वो हमारे पीछे नही आरहा हो , लेकिन वो कहाँ इतनी जल्दी हार मानने वालाथा .वो हमारे पीछे इश तरह पड़ा था , जीस तरह भस्मासुर शंकर जी के पीछे भागा था . हम फीर भागे ,रेस्ट हाऊस के नजदीक भैया के दोस्त का घर था , लेकिन वहाँ जाते तो भी पकड़े जाते हम मेन रोड पार करके एक सरकारी बीलडींग 'रेशम केन्द्र 'तक पहुँचे ,रेशम केन्द् अभी नया नया बना था , हम बीलडींग के पीछे पहूँचकर रुके ,हमे लगा अब हम लोग सुरक्षित है , वो अब यहाँ तक तो नही आयेगा फीर भी भैया घबरा रहा था ,शायद भैया को मेरे साथ भागने मे दिक्कत हो रही थी ,ओर बात भी सही थी ,यदी भैया अकेले होते तो कीसी तरह उससे नीपट ही लेते भैया ने मुझसे कहा तुम यहीं रुको मैं उसे देखके आता हूँ , मैं भैया का साथ छोड़ने को तैयार नही था भैया थोडी देर तक मुझे समझाते रहे फीर भैया बोले "एक मीनीट् , मैं देखता हूँ ",एक चोडी सी दीवार के कीनारे से भैया ने झाँकने की कोशीश की ,भैया ने वहाँ वो सचमुच अनुभव कीया जो अक्सर हमारी हिन्दी फिल्मों मे कभी कभी आप लोगों ने देखा होगा , भैया दीवार के इश तरफ़ से झांक रहे थे , और वो आदमी दीवार के उस तरफ़ से झांक रहा था , दोनों चेहरे आमने सामने !!!!! भैया के होस उड़ गए ,भैया जोर से चिललाया "भाग चीनटू ", तभी उसने इंट का एक अद्धा उठा कर हमारी ओर फेंका ,वो सीधे मेरे पैर पार लगा लेकिन चोट नही आई , इस बार हम बहुत तेज़ी से भागे या शायद वो थक कर रुक गया था हम लोग सीधे भैया के दोस्त के घर जाकर रुके ,हम लोगों ने चैन की साँस ली ओर - घंटे रूकने के बाद अपने घर गए ,लेकिन अभी भी कुछ ओर होना बाकी था। हमारे घर पहुंचने के पहले वो ख़बर घर तक पहुँच गई थी ,पीता जी का आदत देर तक सोने की थी , और आज शायद उस आदमी ने आकार ही पीता जी को उठाया होगा , पीता जी लेटे हुए थे दरवाजे के ओर पीठ कर के मैं चुपचाप अन्दर चला गया ,अब जो भी झेलना था भैया को अकेले ही झेलना था ,कयोंकी मै तो छोटा था पीता जी ने भैया को बहुत डांटे और जीतना थोड़ा बहुत चना हम लेके आये थे बापस करके आने को कहा ,अब भैया को उसके ही पास जाना था जीसको सुबह से अपने पीछे भगा रहे थे , कोई भी सोच सकता है , एक १२-१३ साल के लड़के के लीए ये कीतना मुश्कील काम था मै भी कुछ मदद नही कर सकता था , कयोंकी मे तो छोटा था ना फीर भी भैया कीसी तरह गए , वहाँ पहुँचे तो देखा , वहाँ नजारा ही कुछ और था जो अधेड़ हमारे पीछे था ,वो और उसका लड़का भैया से बोल रहे थे ," ये चने ले जाओ , और तुम्हे और चने लगें तो लेजाओ , पहले से बता देते की तुम मास्साब के मोडा हो तो , हमतो वैसी लेजान्देते"