सोमवार, 3 मार्च 2008

अकबर -जोधा सच या कल्पना !!

कुछ दिनों पहले एक फ़िल्म आई है ! अकबर जोधा जिसमे बॉलीवुड के दो बेहतरीन सितारे है , ऋतिक रोशन और ऐश्वर्या राय ,जिसके निर्देशक है , आशुतोष गोवारिकर जो अपनी पहली फ़िल्म से ही नाम व फ़िल्म इंडस्ट्री मे इज्ज़त कम चुके है ,हो भी क्यों ना आखिर उनकी पहली फ़िल्म लगान सुपर डुपर हिट जो गई थी !अकबर जोधा को लेकर जो विवाद उठा है , वो यह है कि उत्तर प्रदेश के राजपूतों का कहना है ,कि जोधा अकबर कि नही, बल्कि अकबर के बेटे कि बेगम थी ,फ़िल्म रिलीस से पहले आया ,निर्देशक महोदय का बयान ध्यान देने योग्य है, कि फ़िल्म मै ३०% सच्चाई तथा ७०% कल्पना है ।

अब प्रश्न ये उठता है कि जब आप किसी एतेहसिक मुद्दे पर फ़िल्म बनाते है तो आपकी कुछ जिम्मेदारी होती है ,आपको पब्लिक के सामने बो पेश करना होता है जो सही है या जिसकी एतिहासिक प्रमादिकता है ,रही बात अभ्व्यक्ति कि स्वतंत्रता कि तो मै निर्देशक महोदय से ये पूछना चाहूँगा ,कि कहीं इनकी अगली फ़िल्म गाँधी जी पर तो नही होगी, जिसमे वे गाँधी जी को शराबी या जुआरी के रूप मै पेश कर रहे हों ,और प्रशन पूछना चाहूँगा पब्लिक से क्या वो इश तरह कि फ़िल्म को स्वीकार करेगी ?यदि आशितोध जी को काल्पनिक फ़िल्म ही बनानी थी तो अकबर कि जगह राजा का नाम कुछ और भी रखा जा सकता था । आशुतोष जी का ये बयान कि फ़िल्म७०% कल्पना है , बहुत ही हास्यास्पद है , कि अब आप इतिहास को सोचेंगे उसकी बारे मै कल्पना करेंगे और उसे लोगों के सामने पेश करके पूछेंगे, कैसी है मेरी सोच?
असल मे कभी -कभी आदमी कि सफलता ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बन जाती है ,आशुतोष जी कि पहली फ़िल्म लगान के पात्र काल्पनिक तथा पृष्ट भूमि एतेहसिक थी ,इश बार भी वो अपनी सफलता दोहराना चाहते थे ,तो उन्होंने अपनी पिछली सफलता को देखा और उससे सीख लेकर बना डाली अकबर-जोधा ! जिसके पात्र एतेहसिक तथा कहानी काल्पनिक है ,बिना सोचे समझे कि इसका पब्लिक पर क्या असर पड़ेगा या वे दिखा क्या रहे है , मै कहता हूँ आपको फ़िल्म बनानी ही थी तो आप पात्रों के नाम कुछ और रख सकते थे ।
वैसे जो भी हो फ़िल्म कि लागत ,भव्यता तथा विवाद ने फ़िल्म को व्यावसायिक नजरिये से सफल बना दिया है , आशुतोष गोवारिकर खुस तथा जनता निश्चिंत है , अब देखना ये होगा कि आशुतोष जी अपनी अगली फ़िल्म मे किस एतिहासिक पात्र को अपनी कल्पना के नजरिये से देखते है और उस पर फ़िल्म बनाते है ।