रविवार, 4 दिसंबर 2011

जाने कहाँ ......है ख़ुशी

कुछ पल के लिए आती है,
फिर जाने कहाँ चली जाती है ख़ुशी .
यूँ तो गम में भी जी ही रहे थे ,
फिर क्यू आकर जिन्दा होने का एहसास कराती है ख़ुशी
जब होती है साथ, मुझे मेरी एहमियत समझाती है ख़ुशी
जब सीखने लगता हूँ खुश रहना ,
जाने किस बात पर रूठ जाती है ख़ुशी .
माना हर बार कुछ नया सिखाती है ख़ुशी
अपने पीछे ,गमों का सागर छोड़ जाती है ख़ुशी
कभी तो छोटी छोटी बातों में ही मिल जाती है ख़ुशी
कभी सदियों तक तरसाती है ख़ुशी
जितनी भी कोशिश की रेत को मुट्ठी में करने की .
जाने कहाँ कहाँ से फिसल जाती है ख़ुशी
कुछ पल के लिए आती है ,
फिर जाने कहाँ चली जाती है ख़ुशी --- विभोर सोनी "
तेज़"

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