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गुरुवार, 12 नवंबर 2009

....खामोख्वाह

मै खुश हूँ आज .......खामोख्वाह
जिन्दगी है परेशां आज ........खामोख्वाह
आज कल लोग मिलते है कुछ इश तरह ,
हंस देते है ,मुझे दूर से ही देख कर ......खामोख्वाह
बचपन में मै डरता था अँधेरे से ,
डर था मुझे अँधेरे में किसी भूत के होने का ,
कुछ बड़ा हुआ तो पता चला मै डरता था .....खामोख्वाह
इक वक़्त था मै रोता था ,
परेशां था ,दुखी था ....... खामोख्वाह
दुःख के सागर में डूबता-उभरता था
तैरता था डुबकियां लेता था ....खामोख्वाह
जब याद करता हूँ ,उस वक़्त को
हंस देता हूँ आज ......खामोख्वाह
प्यार से पड़ा जब वास्ता मेरा ....
महसूस कर उसे पास ,सवाल करता ,जवाब भी देता ,
मन ही मन खुद से बातें करता था ...... खामोख्वाह
कागज पर लिख कर रखी थी ,कुछ बातें ,
कि मिलूंगा उससे तो कह डालूँगा सारी बातें ........खामोख्वाह
दोस्तों के बीच महफूज़ महसूस करता था ,
जरा सी बात पर ठहाके लगा कर हँसता था .......खामोख्वाह
आज अकेला हूँ ,न यार कोई ,न दोस्त कोई ,
न प्यार कोई ,न किसी का इन्तेज़ार कोई ,
जाने कोई वजह  है ,या मै खुश हूँ आज ........खामोख्वाह -----विभोर सोनी