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शनिवार, 26 दिसंबर 2009

"आइने में ........"

सारी दुनिया से छिपता -छुपता ,जब भी घर आता ,
आइने में एक शख्स को पाता,
रहता वह डरा हुआ, मायूश, मुझसे नज़रें भी न मिला पाता ,
उसे इश तरह देख कर मै भी कुछ उदास हो जाता ,
फिर आगे बढ़ कर उसे था समझाता ,
ये जीवन है ,सुख -दुःख तो है , आता जाता ,
कुछ देर उदास होकर , मै भी उसे भूल जाता ,
वापस अपने रोज़मर्रा के कामों में लग जाता ,
कभी-कभी अकेला पाकर ,वह मुझे अपनी व्यथा सुनाता ,
अक्सर उसे देख कर मै कन्नी काट जाता ,
वह पिछले कुछ दिनों से आइने में दिखा नहीं ,
वह है, भी या कहीं चला गया , पता नहीं ,
जब भी मै उदास होता हूँ ,मुझे वह याद आता ,
शायद वह होता तो ,मै उससे कुछ कह पाता,
अब जब भी जाता हूँ, आइने में उसे ढूँढने ,
एक अलग ही शख्स , मेरे सामने है ,मुस्कुराता ,
मुझसे कहता कह दे यार ,जो भी है तू कहना चाहता ,
अजनबियों का इस तरह पेश आना ,मुझे न भाता ,
उसका "तू" कह कर बुलाना , मुझे रास न आता ,
फिर भी दिल की बात तो कहनी ही थी किसी से , कहाँ जाता ,
धीरे-धीरे उससे ही बातें करने लगा ,उसके साथ ही थोडा घुलने -मिलने लगा ,
जब मै अपनी व्यथा उसे सुनाता ,न वो समझाता, न अपनी सुनाता ,
बस मेरी बातों को सुनकर ,हल्के से मुस्कुराता ,
और बाकी समय ,नाचता ,गुनगुनाता ,अलग अलग चेहरे बनाता,
कभी बिस्तर पर बैठ ,रजाई पर टिक कर ,चैन की बंसी बजाता,
उसका इस तरह असंवेदनशील होना मुझे कतई ना भाता ,
लेकिन उसको मुस्कुराता देख ,मेरा मन हल्का हो जाता ,
साथ-ही-साथ यह एहसास भी ,कि दुनिया में गम है नहीं ,इतना ज्यादा ,
वह डरा हुआ ,मायूश, उदास शख्स ,जो था मुझे अपनी व्यथा सुनाता ,
कभी-कभी याद आ जाता है, बहुत दूर यादों में बैठा आंसू बहता ,
अब उसकी व्यथा -कथा लगती है ,डरावने सपने सी ,
मायूसी जैसे कोई दानव ,उदासी काला शाया,
अच्छा ही हुआ वह चला गया ,
वरना एक दिन वह मुझे खा जाता .----विभोर सोनी