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बुधवार, 1 जुलाई 2015

मैं मौत को मार दूंगा |

मैं मौत को मार दूंगा |

मैं मौत को मार दूंगा |
धरती को फाड़ दूंगा |
सूरज को निगल लूंगा |
तारों को कुचल दूंगा |
दुःखों को पहाड़ दूंगा |
नदी को धार दूंगा |
क्षितिज को मरोड़ दूंगा |
चाँद को मैं तोड़ लूंगा |
खून को उबाल दूंगा |
रगों में फिर डाल लूंगा |
सरगम को मैं राग दूंगा |
रंगों को भी लाल दूंगा |
कोयल को गीत दूंगा |
चकोर को मीत दूंगा |
मीत को मैं प्रीत दूंगा |
जिंदगी को जीत लूंगा |
मौत को फिर हार दूंगा |
मौत को फिर मार दूंगा |
---- विभोर सोनी 'तेज़'

शनिवार, 24 जनवरी 2009

मुझमे से "मैं " ...........

ये मैं हूँ , मुझसा कोई और नही,
दुनिया में इस मैं का कोई विकल्प नही !!
मन उदास होता है, दिल रोता है ,ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है ,
तब दिल करता है , कुछ ऐसा हो गायब हो जाऊं ,कहीं छिप जाऊं,
मै सभी को देखूं , किसी को नज़र ना आऊँ ,
सदियों से चल रही चूहा दौड़ में सामिल हो जाऊं !!
जब भी मै कभी था असफल हुआ ,
बहुतेरों के वाणी-वाणों से था, आहात हुआ!!
भीड़ में सामिल होने की ,गायब होने की,
वही इच्छा फ़िर जाग उठी !!
कोशिश की भीड़ में सामिल हो गया ,
मुझमे से "मैं " कहीं खो गया !!
जैसी थी दुनिया मै वैसा हो गया ,
जिधर को चल हवा ,हवा के संग होगया !!
इश कवायद के पीछे थी प्रबल इच्छा सफल होने की ,
लो आज मैं सफल हो गया !!
पर उस मैं का क्या जो था कहीं पर खो गया ?
उम्मीद है जल्द उशे जगा लूँगा , जो मेरे भीतर ही था कहीं सो गया !!------विभोर सोनी