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बुधवार, 1 जुलाई 2015

मैं मौत को मार दूंगा |

मैं मौत को मार दूंगा |

मैं मौत को मार दूंगा |
धरती को फाड़ दूंगा |
सूरज को निगल लूंगा |
तारों को कुचल दूंगा |
दुःखों को पहाड़ दूंगा |
नदी को धार दूंगा |
क्षितिज को मरोड़ दूंगा |
चाँद को मैं तोड़ लूंगा |
खून को उबाल दूंगा |
रगों में फिर डाल लूंगा |
सरगम को मैं राग दूंगा |
रंगों को भी लाल दूंगा |
कोयल को गीत दूंगा |
चकोर को मीत दूंगा |
मीत को मैं प्रीत दूंगा |
जिंदगी को जीत लूंगा |
मौत को फिर हार दूंगा |
मौत को फिर मार दूंगा |
---- विभोर सोनी 'तेज़'

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

घोंसला

उड़ रहा हूँ मैं ,निकल आया हूँ  बहुत दूर अपने घोंसले से ,
अब तो छू लूंगा आसमां भी ,निकला था इसी होंसले से ,

घोंसला,निकला था जिसकी तलाश में ,
वो अब भी ख्वाबों में ही है ,

घोंसला,जो पीछे छोड़ आया हूँ मैं ,
पिछली बारिश में कमजोर हो चला था, तोड़ आया हूँ मैं ,

रोजगार कि तलाश में निकला था,
नहीं इस शहर में मरने आया हूँ मैं,

छोटे- छोटे तिनकों से बनता है घोंसला ,
उन्ही तिनकों को जोड़ने आया हूँ मैं ,

कुछ ख्वावों को पूरा करने ,
जाने कितने पुराने ख्वाबों का गला घोंट आया हूँ मैं,

हर दिन बढ़ रहा हूँ मंज़िल कि ओर ,
इस दौड़ में, जाने क्या कुछ पीछे छोड़ आया हूँ मैं . ----विभोर सोनी