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मंगलवार, 26 नवंबर 2013

घोंसला

उड़ रहा हूँ मैं ,निकल आया हूँ  बहुत दूर अपने घोंसले से ,
अब तो छू लूंगा आसमां भी ,निकला था इसी होंसले से ,

घोंसला,निकला था जिसकी तलाश में ,
वो अब भी ख्वाबों में ही है ,

घोंसला,जो पीछे छोड़ आया हूँ मैं ,
पिछली बारिश में कमजोर हो चला था, तोड़ आया हूँ मैं ,

रोजगार कि तलाश में निकला था,
नहीं इस शहर में मरने आया हूँ मैं,

छोटे- छोटे तिनकों से बनता है घोंसला ,
उन्ही तिनकों को जोड़ने आया हूँ मैं ,

कुछ ख्वावों को पूरा करने ,
जाने कितने पुराने ख्वाबों का गला घोंट आया हूँ मैं,

हर दिन बढ़ रहा हूँ मंज़िल कि ओर ,
इस दौड़ में, जाने क्या कुछ पीछे छोड़ आया हूँ मैं . ----विभोर सोनी