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रविवार, 23 जनवरी 2011

काय! विभोर आज तो...


हम सभी के जीवन में कुछ  ऐसी घटनाएँ होती है , जो कभी भुलाई नहीं जा सकती, मै  जब ऐसी घटनाओं के बारे में सोचता  हूँ ,इनमे से ज्यादातर ऐसी घटनाएँ थी ,जिनमे  मै कभी खुद को असहाए ,शर्मिंदा, या बेचारा महशूस  करता था कभी खुद पर तरस खाया करता था कि  "ये मेरे साथ ही क्यूँ होता है ?" ये बड़े आश्चर्य कि बात है कि बजाये दुखी होने के  आज मै ही उन सारी बातों पर मज़े से हँसता हूँ  इन सारी बातों से मै इस निष्कर्श पर पहुंचा हूँ कि :-"जीवन के सबसे शर्मनाक पल ,वास्तव मै सबसे मज़ेदार पल होते है "
                                                          बात उन दिनों की है जब मै मेरे परिवार के साथ मुन्ग्वानी में रहता था , मुन्ग्वानी एक गाँव है । पिता जी हाई स्कूल में टीचर थे,हम वहाँ शहर से ट्रान्सफर हो कर गए थे ,और गाँव का माहौल मेरे लिए नया था मै इस नए माहौल मै सहज महशूस नहीं कर पा रहा था, क्योंकि सारे ही देहाती बोली मै बात किया करते थे ,इस वजह से मेरे कुछ ही दोस्त बन पाए थे ,वैसे भी मै अंतर्मुखी था और अपने मन कि बातें किसी से नहीं कहता था उस वक़्त मेरी उम्र ८ साल थी ,और मै चौथी क्लास में था। मेरा  स्कूल घर से नजदीक ही था। उन दिनों मेरी दिनचर्या कुछ इस  तरह थी- सुबह ७-७:३० बजे तक उठना ,नहा -धो कर ,तैयार होकर पूजा करना और खाना खाने के बाद १०:३० तक स्कूल पहुंचना  स्कूल लेट पहुँचने पर सजा दी जाती थी जब कभी उठने मे देरी हो जाती ,सारे काम जल्दी जल्दी करने होते थे उन दिनों मम्मी को एक ख्याल सताया करता था कि कहीं उनके बच्चे जिद्दी न बन जाएँ ,तो अक्सर मम्मी हमारी जिदों को पूरा नहीं होने देती थीं. खासकर मेरी क्योंकि मै घर मै सबसे छोटा था और मुझे ही ज्यादा लाड़-प्यार मिला करता था 
                

                                                             उस दिन मे कुछ देरी से उठा ,नहा -धो कर ,तैयार होने तक घड़ी मे १०:१५  हो चुका था ,अभी मुझे पूजा करना था, और खाना खाना था मैने मम्मी से कहा कि आज मै पूजा नहीं करूंगा ,मम्मी बोलीं -अभी बहुत टाइम है , पूजा कर लो ,मैंने जल्दी जल्दी अधूरे मन से पूजा कि ,तब तक १०:२५ हो चुका था मैंने मम्मी से कहा मैं खाना नहीं खाऊँगा नहीं तो लेट हो जाऊँगा ,बिना खाना खाए मम्मी स्कूल कैसे जाने दे सकती थी , बोली खाना खा कर ही जाना ,मैंने जैसे तैसे खाना खाया ,तब तक मै  लेट हो चुका था अब मै मम्मी से बोला कि -स्कूल नहीं जाऊँगा ,मम्मी बोली -"क्यूँ नहीं जाओगे ?" मै बजह नहीं बता पाया बस इतना कहा-"बस नहीं जाऊँगा"

जब मम्मी के बार बार पूछने पर भी मैने कोई बजह नहीं बताई ,तो मम्मी को लगा कि मै सिर्फ जिद कर रहा हूँ ,मम्मी ने फिर पूछा कारण बतादो क्यूँ नहीं जाना है? ,उनकी ये सारी बातें मुझे डांट लग रही थीं ,मै ने स्कूल नहीं जाने का निश्चय कर लिया था ,मैंने जवाब दिया "नहीं जाना है "अब तक मम्मी को पूरा विश्वास हो चुका था कि मै सिर्फ जिद कर रहा हूँ ,मम्मी ने भैया से कहा ,जो मुझसे उम्र मै ४साल बड़े है ,"इसे स्कूल छोड़ के आओ" ,मै  किसी भी हालत मै स्कूल जाने के लिए तैयार नहीं था ,कुछ देर यूहि जिद्दोजहद के बाद भैया हाथ पकड़ कर मुझे खीचते हुए स्कूल कि ओर ले जाने लगे ,मै  भी पूरा जोर लगा रहा था ,लेकिन कोई फायदा नहीं ,जब घर से कुछ दूर तक भैया मुझे खीचते हुए ले आये  ,और मेरा कोई बस नहीं चल रहा था तो मैने आखरी हत्यार अजमाया मै वही रास्ते पर ही बैठ गया  मैंने सोचा अब कैसे ले जायेंगे स्कूल पर भैया कहाँ हार मानने वाले थे ,उन्होंने मुझे गोद मै उठाने के कोशिश कि ,जिसे मैंने पूरी नहीं होने दिया कुछ देर यूहि छीना  -झपटी के बाद भैया ने मेरे दोनों हाथ कोहनी के उपर से पकडे और मुझे घसीटते हुए स्कूल कि तरफ बढ़ने लगे ,अब मै कुछ नहीं कर सकता था क्यूंकि मेरे हाथ भैया ने अच्छी तरह से पकड़ रक्खे थे ,कुछ बस न चलता देख मैंने रोना शुरू कर दिया , भैया फिर भी नहीं रुके ,और मुझे सीधा क्लास मै लेजाकर बैठा दिया ,उस वक़्त क्लास मे ममता मैडम थीं ,वो मुझे देखते ही हैरान हो गयी और बोली -"इतने बड़े हो गए फिर भी ,तुम स्कूल आने मे रो रहे हो ",फिर मै  क्या बोलता आंसू पोंछे और चुप चाप अपनी जगह पर जाकर बैठ गया ,अब मुझे बहुत शर्म महशूस हो रही थी ,इसलिए मै किसी से नजरें नहीं मिला रहा था ,सरझुका कर नजरें पुस्तक मै गड़ा दी थीं ,लंच टाइम होते होते  सब सामान्य  लगने लगा था ,मै अभी भी पुस्तक पर ही नजरें गडाए हुआ था ,,तभी मेरी एक फ्रेंड "अभिलाषा" चेहकती हुई ,मेरे पास आई ,मेरे चेहरे के सामने अपना चेहरा लाकर बोली -"काय !विभोर आज तो तुम सुटत -सुटत आए हो"



           वह मेरी जिन्दगी का सबसे शर्मनाक पल था अब जब भी मुझे अनावश्यक रूप से लगता है कि ,मेरी बेइज्जती हुई है , मै उस पल को याद करलेता हूँ ,और अभिलाषा का चेहरा मेरी आँखों के सामने झूल जाता है ,साथ ही   बेइज्जत होने का एहसास भी मिट जाता है .,थोड़ा अजीब है ये जो कभी आपके लिए शर्मनाक पल हुआ करते थे ....आज उन्ही पलों को याद कर आप अपनी हंसी नहीं रोक पाते हैं .

जिन्दगी में ऐसा कई बार होता है जब आप किसी छोटी सी अनावश्यक बात से परेशान हो जाते है ,और आपको लगता है "सब खत्म होगया ","मेरी इज्जत ख़राब हो गई", या "मै अब लोगों का सामना कैसे करूँगा " आप परेशान होते है, ऐसी स्तिथि मै मेरी माने अपनी जिन्दगी की किसी ऐसी ही घटना के वारे में सोचें जो कभी आपके लिए "शर्मनाक घटना" थी ,और आपके चेहरे पर हंसी नहीं तो मुस्कान जरूर आजाएगी .और वे लोग जिनके साथ कभी ऐसा कुछ नहीं हुआ है ,वो  मेरी जिन्दगी के "शर्मनाक पल" को महसूस कर हंस सकते है .-----विभोर सोनी

Isn't it kind of strange ....." The Most embarrassing moment of your life ,is most hilarious  one"----vibhor soni

शुक्रवार, 27 जून 2008

"मिल गया तो माटी, खो गया तो सोना है "

जिन्दगी पाना और खोना है ,

कुछ पाकर खोना है , कुछ खो कर रोना है .

है ,ये आदमी की फितरत अपनों के दुखों में शामिल होना,

जो मिला नही उसके लिए रोना ,और जो मिला उसे खोना है .

प्यार है वो ,जो मिल गया तो माटी खो गया तो सोना है ,

माटी के न मिलने पैर क्या रोना ,सोने के खोने पर खुस होना है .

अपने ग़मों को समेट कर अकेले में रोना,

गर कोई पूछे तो अपने दुखों का रोना ख़ुद रोना है .

सब कुछ छूट जाएगा ,सिर्फ यादों को साथ होना है ,

आज हमें अपने ह्रदय को स्नेह रस से भिगोना है .

अपनी खुसी में गैरों को शामिल करना ,

गैरों के गम में भी शामिल होना है .

जो कल बीत चुका उसके लिए क्या रोना ,

आने वाले कल में फ़िर कुछ नया होना है .

जीवन डोर में आशाओं के मोटी पिरोना है .

न बीते बीते हुए कल को याद कर रोना ,

न आने वाले कल को सोचकर चिंतित होना है ,

हमे तो बस आज में जीना ,और आज में ही होना है .

एक दिन सभी हमें ,और हम सभी को छोड़ जायेंगे ,

म्रत्यु शैय्या पर अकेले ही सोना है ,

तो फ़िर किस बात का रोना है .

बाकी रही आज की बात , है नही ये राज की बात ,

जो लिख दिया उस खुदा ने बन्दे की तकदीर में , वही होना है ,वही होना है . -------विभोर सोनी