सारी दुनिया से छिपता -छुपता ,जब भी घर आता ,
आइने में एक शख्स को पाता,
रहता वह डरा हुआ, मायूश, मुझसे नज़रें भी न मिला पाता ,
उसे इश तरह देख कर मै भी कुछ उदास हो जाता ,
फिर आगे बढ़ कर उसे था समझाता ,
ये जीवन है ,सुख -दुःख तो है , आता जाता ,
कुछ देर उदास होकर , मै भी उसे भूल जाता ,
वापस अपने रोज़मर्रा के कामों में लग जाता ,
कभी-कभी अकेला पाकर ,वह मुझे अपनी व्यथा सुनाता ,
अक्सर उसे देख कर मै कन्नी काट जाता ,
वह पिछले कुछ दिनों से आइने में दिखा नहीं ,
वह है, भी या कहीं चला गया , पता नहीं ,
जब भी मै उदास होता हूँ ,मुझे वह याद आता ,
शायद वह होता तो ,मै उससे कुछ कह पाता,
अब जब भी जाता हूँ, आइने में उसे ढूँढने ,
एक अलग ही शख्स , मेरे सामने है ,मुस्कुराता ,
मुझसे कहता कह दे यार ,जो भी है तू कहना चाहता ,
अजनबियों का इस तरह पेश आना ,मुझे न भाता ,
उसका "तू" कह कर बुलाना , मुझे रास न आता ,
फिर भी दिल की बात तो कहनी ही थी किसी से , कहाँ जाता ,
धीरे-धीरे उससे ही बातें करने लगा ,उसके साथ ही थोडा घुलने -मिलने लगा ,
जब मै अपनी व्यथा उसे सुनाता ,न वो समझाता, न अपनी सुनाता ,
बस मेरी बातों को सुनकर ,हल्के से मुस्कुराता ,
और बाकी समय ,नाचता ,गुनगुनाता ,अलग अलग चेहरे बनाता,
कभी बिस्तर पर बैठ ,रजाई पर टिक कर ,चैन की बंसी बजाता,
उसका इस तरह असंवेदनशील होना मुझे कतई ना भाता ,
लेकिन उसको मुस्कुराता देख ,मेरा मन हल्का हो जाता ,
साथ-ही-साथ यह एहसास भी ,कि दुनिया में गम है नहीं ,इतना ज्यादा ,
वह डरा हुआ ,मायूश, उदास शख्स ,जो था मुझे अपनी व्यथा सुनाता ,
कभी-कभी याद आ जाता है, बहुत दूर यादों में बैठा आंसू बहता ,
अब उसकी व्यथा -कथा लगती है ,डरावने सपने सी ,
मायूसी जैसे कोई दानव ,उदासी काला शाया,
अच्छा ही हुआ वह चला गया ,
वरना एक दिन वह मुझे खा जाता .----विभोर सोनी
शनिवार, 26 दिसंबर 2009
गुरुवार, 12 नवंबर 2009
....खामोख्वाह
मै खुश हूँ आज .......खामोख्वाह
जिन्दगी है परेशां आज ........खामोख्वाह
आज कल लोग मिलते है कुछ इश तरह ,
हंस देते है ,मुझे दूर से ही देख कर ......खामोख्वाह
बचपन में मै डरता था अँधेरे से ,
डर था मुझे अँधेरे में किसी भूत के होने का ,
कुछ बड़ा हुआ तो पता चला मै डरता था .....खामोख्वाह
इक वक़्त था मै रोता था ,
परेशां था ,दुखी था ....... खामोख्वाह
दुःख के सागर में डूबता-उभरता था
तैरता था डुबकियां लेता था ....खामोख्वाह
जब याद करता हूँ ,उस वक़्त को
हंस देता हूँ आज ......खामोख्वाह
प्यार से पड़ा जब वास्ता मेरा ....
महसूस कर उसे पास ,सवाल करता ,जवाब भी देता ,
मन ही मन खुद से बातें करता था ...... खामोख्वाह
कागज पर लिख कर रखी थी ,कुछ बातें ,
कि मिलूंगा उससे तो कह डालूँगा सारी बातें ........खामोख्वाह
दोस्तों के बीच महफूज़ महसूस करता था ,
जरा सी बात पर ठहाके लगा कर हँसता था .......खामोख्वाह
आज अकेला हूँ ,न यार कोई ,न दोस्त कोई ,
न प्यार कोई ,न किसी का इन्तेज़ार कोई ,
जाने कोई वजह है ,या मै खुश हूँ आज ........खामोख्वाह -----विभोर सोनी
जिन्दगी है परेशां आज ........खामोख्वाह
आज कल लोग मिलते है कुछ इश तरह ,
हंस देते है ,मुझे दूर से ही देख कर ......खामोख्वाह
बचपन में मै डरता था अँधेरे से ,
डर था मुझे अँधेरे में किसी भूत के होने का ,
कुछ बड़ा हुआ तो पता चला मै डरता था .....खामोख्वाह
इक वक़्त था मै रोता था ,
परेशां था ,दुखी था ....... खामोख्वाह
दुःख के सागर में डूबता-उभरता था
तैरता था डुबकियां लेता था ....खामोख्वाह
जब याद करता हूँ ,उस वक़्त को
हंस देता हूँ आज ......खामोख्वाह
प्यार से पड़ा जब वास्ता मेरा ....
महसूस कर उसे पास ,सवाल करता ,जवाब भी देता ,
मन ही मन खुद से बातें करता था ...... खामोख्वाह
कागज पर लिख कर रखी थी ,कुछ बातें ,
कि मिलूंगा उससे तो कह डालूँगा सारी बातें ........खामोख्वाह
दोस्तों के बीच महफूज़ महसूस करता था ,
जरा सी बात पर ठहाके लगा कर हँसता था .......खामोख्वाह
आज अकेला हूँ ,न यार कोई ,न दोस्त कोई ,
न प्यार कोई ,न किसी का इन्तेज़ार कोई ,
जाने कोई वजह है ,या मै खुश हूँ आज ........खामोख्वाह -----विभोर सोनी
सोमवार, 26 जनवरी 2009
आज फ़िर................
आज फ़िर किसी ने मेरा दिल दुख दिया ,
मेरे जज्बातों को ठहाकों में उड़ा दिया !!
चाहते है ,अपनों के आँसूओं को पोंछना ,
आज फ़िर अपनों ने ही रुला दिया !!
कहते है असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है ,
ज़माने ने हमें इसी सीढ़ी पर गिरा दिया !!
गिर सकता हूँ, पर रुकूंगा नही ,
कुछ पल रुक भी जाऊं तो , पीछे हटूंगा नही !!
मेने अन्दर छिपे "मै" को फ़िर से जगा लिया ,
जीने को चाह ने ,जीना सिखा दिया !!
गिरना- उठना , उठना -गिरना होगा बार- बार ,
दुनिया होगी उसकी मुट्ठी में जो कभी न माने हार !!
जनता हूँ आंखों में जो सपने है पूरे होंगे ,तब भी ,
आज फ़िर उन आँखों को डबडबा लिया !!
निराशाओं के साथ -ही -साथ है , आशाऐ ,
असफलता ने मुझे शायर बना दिया !!------विभोर सोनी
मेरे जज्बातों को ठहाकों में उड़ा दिया !!
चाहते है ,अपनों के आँसूओं को पोंछना ,
आज फ़िर अपनों ने ही रुला दिया !!
कहते है असफलता सफलता की पहली सीढ़ी है ,
ज़माने ने हमें इसी सीढ़ी पर गिरा दिया !!
गिर सकता हूँ, पर रुकूंगा नही ,
कुछ पल रुक भी जाऊं तो , पीछे हटूंगा नही !!
मेने अन्दर छिपे "मै" को फ़िर से जगा लिया ,
जीने को चाह ने ,जीना सिखा दिया !!
गिरना- उठना , उठना -गिरना होगा बार- बार ,
दुनिया होगी उसकी मुट्ठी में जो कभी न माने हार !!
जनता हूँ आंखों में जो सपने है पूरे होंगे ,तब भी ,
आज फ़िर उन आँखों को डबडबा लिया !!
निराशाओं के साथ -ही -साथ है , आशाऐ ,
असफलता ने मुझे शायर बना दिया !!------विभोर सोनी
शनिवार, 24 जनवरी 2009
मुझमे से "मैं " ...........
ये मैं हूँ , मुझसा कोई और नही,
दुनिया में इस मैं का कोई विकल्प नही !!
मन उदास होता है, दिल रोता है ,ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है ,
तब दिल करता है , कुछ ऐसा हो गायब हो जाऊं ,कहीं छिप जाऊं,
मै सभी को देखूं , किसी को नज़र ना आऊँ ,
सदियों से चल रही चूहा दौड़ में सामिल हो जाऊं !!
जब भी मै कभी था असफल हुआ ,
बहुतेरों के वाणी-वाणों से था, आहात हुआ!!
भीड़ में सामिल होने की ,गायब होने की,
वही इच्छा फ़िर जाग उठी !!
कोशिश की भीड़ में सामिल हो गया ,
मुझमे से "मैं " कहीं खो गया !!
जैसी थी दुनिया मै वैसा हो गया ,
जिधर को चल हवा ,हवा के संग होगया !!
इश कवायद के पीछे थी प्रबल इच्छा सफल होने की ,
लो आज मैं सफल हो गया !!
पर उस मैं का क्या जो था कहीं पर खो गया ?
उम्मीद है जल्द उशे जगा लूँगा , जो मेरे भीतर ही था कहीं सो गया !!------विभोर सोनी
दुनिया में इस मैं का कोई विकल्प नही !!
मन उदास होता है, दिल रोता है ,ऐसा मेरे साथ अक्सर होता है ,
तब दिल करता है , कुछ ऐसा हो गायब हो जाऊं ,कहीं छिप जाऊं,
मै सभी को देखूं , किसी को नज़र ना आऊँ ,
सदियों से चल रही चूहा दौड़ में सामिल हो जाऊं !!
जब भी मै कभी था असफल हुआ ,
बहुतेरों के वाणी-वाणों से था, आहात हुआ!!
भीड़ में सामिल होने की ,गायब होने की,
वही इच्छा फ़िर जाग उठी !!
कोशिश की भीड़ में सामिल हो गया ,
मुझमे से "मैं " कहीं खो गया !!
जैसी थी दुनिया मै वैसा हो गया ,
जिधर को चल हवा ,हवा के संग होगया !!
इश कवायद के पीछे थी प्रबल इच्छा सफल होने की ,
लो आज मैं सफल हो गया !!
पर उस मैं का क्या जो था कहीं पर खो गया ?
उम्मीद है जल्द उशे जगा लूँगा , जो मेरे भीतर ही था कहीं सो गया !!------विभोर सोनी
शुक्रवार, 27 जून 2008
"मिल गया तो माटी, खो गया तो सोना है "
जिन्दगी पाना और खोना है ,
कुछ पाकर खोना है , कुछ खो कर रोना है .
है ,ये आदमी की फितरत अपनों के दुखों में शामिल होना,
जो मिला नही उसके लिए रोना ,और जो मिला उसे खोना है .
प्यार है वो ,जो मिल गया तो माटी खो गया तो सोना है ,
माटी के न मिलने पैर क्या रोना ,सोने के खोने पर खुस होना है .
अपने ग़मों को समेट कर अकेले में रोना,
गर कोई पूछे तो अपने दुखों का रोना ख़ुद रोना है .
सब कुछ छूट जाएगा ,सिर्फ यादों को साथ होना है ,
आज हमें अपने ह्रदय को स्नेह रस से भिगोना है .
अपनी खुसी में गैरों को शामिल करना ,
गैरों के गम में भी शामिल होना है .
जो कल बीत चुका उसके लिए क्या रोना ,
आने वाले कल में फ़िर कुछ नया होना है .
जीवन डोर में आशाओं के मोटी पिरोना है .
न बीते बीते हुए कल को याद कर रोना ,
न आने वाले कल को सोचकर चिंतित होना है ,
हमे तो बस आज में जीना ,और आज में ही होना है .
एक दिन सभी हमें ,और हम सभी को छोड़ जायेंगे ,
म्रत्यु शैय्या पर अकेले ही सोना है ,
तो फ़िर किस बात का रोना है .
बाकी रही आज की बात , है नही ये राज की बात ,
जो लिख दिया उस खुदा ने बन्दे की तकदीर में , वही होना है ,वही होना है . -------विभोर सोनी
कुछ पाकर खोना है , कुछ खो कर रोना है .
है ,ये आदमी की फितरत अपनों के दुखों में शामिल होना,
जो मिला नही उसके लिए रोना ,और जो मिला उसे खोना है .
प्यार है वो ,जो मिल गया तो माटी खो गया तो सोना है ,
माटी के न मिलने पैर क्या रोना ,सोने के खोने पर खुस होना है .
अपने ग़मों को समेट कर अकेले में रोना,
गर कोई पूछे तो अपने दुखों का रोना ख़ुद रोना है .
सब कुछ छूट जाएगा ,सिर्फ यादों को साथ होना है ,
आज हमें अपने ह्रदय को स्नेह रस से भिगोना है .
अपनी खुसी में गैरों को शामिल करना ,
गैरों के गम में भी शामिल होना है .
जो कल बीत चुका उसके लिए क्या रोना ,
आने वाले कल में फ़िर कुछ नया होना है .
जीवन डोर में आशाओं के मोटी पिरोना है .
न बीते बीते हुए कल को याद कर रोना ,
न आने वाले कल को सोचकर चिंतित होना है ,
हमे तो बस आज में जीना ,और आज में ही होना है .
एक दिन सभी हमें ,और हम सभी को छोड़ जायेंगे ,
म्रत्यु शैय्या पर अकेले ही सोना है ,
तो फ़िर किस बात का रोना है .
बाकी रही आज की बात , है नही ये राज की बात ,
जो लिख दिया उस खुदा ने बन्दे की तकदीर में , वही होना है ,वही होना है . -------विभोर सोनी
मंगलवार, 25 मार्च 2008
चना चोर!!!!!!!
आज की व्यस्ततम जीन्दगी मे ,जहाँ लोगों के पास ख़ुद के लिए समय नही होता है ,अपने वारे मे रुक कर सोचने के लीए समय नही होता है ,भूली बिसरी यादों को ताजा करने के लिए वक्त नही होता है , वहीं कुछ यादें ऐशी होती है ,जिनके वारे मे एक बार सोचने पर ही मन प्रफ्फुलित हो उठता है, ऐशी ही यादों मे से एक याद जो शायद आपको आपका बचपन याद दिला दे ।
बात उन दिनों की है ,जब हम मुन्ग्वानी मे रहते थे , मुन्ग्वानी एक गाओं है ,नरसीहपुर और लखनादौन के बीच मे ,जहाँ पीता जी की स्कूल मे नौकरी थी। पीता जी के शिक्षक होने की वजह से गाओ मे हमारा परिवार प्रतिष्ठित था, बड़े भाई थोड़े शरारती थे ,वैसे उनकी बहुत सी शरारतों मे मैं भी शामील हुआ करता था ,लेकिन छोटा होने की वजह से डांट या मार से बच जाया करता था । हम जहाँ रहते थे , हमारे घर के पीछे खेत थे ,और उस समय खेतों मे लगे थे चने । भैया और भैया का एक दोस्त दोनों सुबह सुबह खेतों मे जा के चने तोड़ कर लाया करते थे ,एक दो बार उनका पाला खेत के मालीक से भी पड़ा लेकीन भैया को उन लोगों से नीपटना आने लगा था , एक दीन सुबह सुबह मेरी नींद खुली , मैंने भैया से खेत मे साथ चलने को कहा , कुछ देर न नकुर करने के बाद भैया मुझे अपने साथ ले जाने को तैयार हो गए ,चूंकी उस दिन भैया का दोस्त भी नही आया था । हम दोनों साथ मे एक बोरा लेकर चल पड़े । हमारे घर के पीछे जो खेत था उसमे गेहूँ लगा हुआ था । उस खेत के बाद अगले खेत मे चने लगे थे ।
भैया ने मुझसे नजर रखने को कहा और ख़ुद खेत मे घुस कर चने तोड़ने लगे , और मे खेत की मेढ़ पर खड़ा यहाँ वहाँ देख रहा था , जहाँ भैया चने तोड़ रहे थे , उससे कुछ ही दूरी पर एक कमरा था , मैं यहाँ वहाँ देख रहा था , मेरा ध्यान खेत पर या भैया पर बिल्कुल नही था, तभी उस कमरे से धोती कुरता पहने हुए ,एक अधेड़ उम्र का व्यकती भागते हुए आया और भैया को पकड़ लीया ,इससे पहले की भैया कुछ समझ पाते उस आदमी ने २-३ हाथ भैया पर जमा दीए, और कहने लगा "चल थाने " , १२-१३ साल के लड़के के लीए थाने जाना एक बड़ा डर होता है , फीर भी भैया ने पुरी हिम्मत के साथ कहा "चल थाने ",दोनों चल पड़े थाने की ओर , मे दूर खड़े खड़े ये सब देख रहा था , मेरे कुछ समझ मे नही आरहा था की मे क्या करूं ,उस आदमी ने भैया की गदन पकड़ी हुई थी , ओर बडबडाते हुए जा रहा था ,जैसे ही उस आदमी की पकड़ ढीली पड़ी ,भैया गर्दन छुडा कर मेरे ओर भागा। उस आदमी ने मेरी ओर इशारा कर के कहा "भैया पकड़ने इहे !!!!!" मुझे कुछ सम्झ्मे नही आया वो आदमी मुझसे ऐसा क्यों कह रहा है । हम दोनों भागते हुए घर की तरफ़ बढे , चूंकी वो अधेड़ था ,ईसलिए हम से पीछे रह गया ।अब हम गेहूँ के खेत मे थे , पोधे इतने बड़े थे की हम बैठ जाने पर दीख नही रहे थे । हम दोनों ने कुछ देर चैन की साँस ली ,तभी भैया ने उठकर देखा ,वो आदमी अभी भी हमारी ही ओर आ रहा था ,और हमसे बहुत नजदीक था । कुछ दूरी पर ही घर था ,लेकिन यदीघर जाते तो पकड़े जाते और घर मे भी डांट पड़ती ,हमने रास्ता बदल दीया और रेस्ट हाऊस की तरफ़ भागे ,मुझे गेहूँ की फसल मे दोंड़ने मे दीक्कत हो रही थी , भैया ने मेरा हाथ जोर से पकड़ा और लगादी दौड़। मैं गेहूँ के पोधों के साथ साथ ऊपर नीचे होते हुए बड़े आराम से घिसट रहा था । तभी एक हादसा हो गया मेरे पैर से एक चप्पल छूट कर गेहूँ के पोधों क बीच कहीं खो गई ,मैं ने भैया से रुकने को कहा, उस वक्त तक भी ज्यादा उजाला नही हुआ था , मुझे कुछ साफ-साफ दीखाई नही दे रहा था ,तभी मुझे उस आदमी क पास आने की आवाज़ आई , वह हमारे बहुत पास आगया था ,भैया भी बोल रहे थे जल्दी कर , मैं बहुत घबरा गयाथा .मैं ने े आखरी बार हाथ घुमाया ,इश बार चप्पल मेरे हाथ मे थी, तब तक वो लगभग हमारे सामने आगया था । जैसे ही चप्पल मेरे हाथ लगी मैं चील्लाया "मील गई ",मेरा एक हाथ भैया के हाथ मे ही था , भैया तुरंत भागा ,मैं फीर से गेहूँ के साथ लहलहाता हुआ खेत के कीनारे तक पहुंचा । अब रेस्ट हाऊस की कांटों वाली फेंसींग पार करनी थी ,चप्पलें मेरे हाथ मे थी , मैने बीना चप्पल पहने ही फेंसींग पार की जिस से मेरे पैर मे हलकी खरोंच आगई, हम थोड़ा आगे बढ़ कर रुके , इश उम्मीद मे की अब शायद वो हमारे पीछे नही आरहा हो , लेकिन वो कहाँ इतनी जल्दी हार मानने वालाथा .वो हमारे पीछे इश तरह पड़ा था , जीस तरह भस्मासुर शंकर जी के पीछे भागा था . हम फीर भागे ,रेस्ट हाऊस के नजदीक भैया के दोस्त का घर था , लेकिन वहाँ जाते तो भी पकड़े जाते । हम मेन रोड पार करके एक सरकारी बीलडींग 'रेशम केन्द्र 'तक पहुँचे ,रेशम केन्द्र अभी नया नया बना था , हम बीलडींग के पीछे पहूँचकर रुके ,हमे लगा अब हम लोग सुरक्षित है , वो अब यहाँ तक तो नही आयेगा । फीर भी भैया घबरा रहा था ,शायद भैया को मेरे साथ भागने मे दिक्कत हो रही थी ,ओर बात भी सही थी ,यदी भैया अकेले होते तो कीसी तरह उससे नीपट ही लेते भैया ने मुझसे कहा तुम यहीं रुको मैं उसे देखके आता हूँ , मैं भैया का साथ छोड़ने को तैयार नही था । भैया थोडी देर तक मुझे समझाते रहे फीर भैया बोले "एक मीनीट् , मैं देखता हूँ ",एक चोडी सी दीवार के कीनारे से भैया ने झाँकने की कोशीश की ,भैया ने वहाँ वो सचमुच अनुभव कीया जो अक्सर हमारी हिन्दी फिल्मों मे कभी न कभी आप लोगों ने देखा होगा , भैया दीवार के इश तरफ़ से झांक रहे थे , और वो आदमी दीवार के उस तरफ़ से झांक रहा था , दोनों क चेहरे आमने सामने !!!!! भैया के होस उड़ गए ,भैया जोर से चिललाया "भाग चीनटू ", तभी उसने इंट का एक अद्धा उठा कर हमारी ओर फेंका ,वो सीधे मेरे पैर पार लगा लेकिन चोट नही आई , इस बार हम बहुत तेज़ी से भागे या शायद वो थक कर रुक गया था । हम लोग सीधे भैया के दोस्त के घर जाकर रुके ,हम लोगों ने चैन की साँस ली ओर २-३ घंटे रूकने के बाद अपने घर गए ,लेकिन अभी भी कुछ ओर होना बाकी था। हमारे घर पहुंचने के पहले वो ख़बर घर तक पहुँच गई थी ,पीता जी का आदत देर तक सोने की थी , और आज शायद उस आदमी ने आकार ही पीता जी को उठाया होगा , पीता जी लेटे हुए थे दरवाजे के ओर पीठ कर के मैं चुपचाप अन्दर चला गया ,अब जो भी झेलना था भैया को अकेले ही झेलना था ,कयोंकी मै तो छोटा था । पीता जी ने भैया को बहुत डांटे और जीतना थोड़ा बहुत चना हम लेके आये थे बापस करके आने को कहा ,अब भैया को उसके ही पास जाना था जीसको सुबह से अपने पीछे भगा रहे थे , कोई भी सोच सकता है , एक १२-१३ साल के लड़के के लीए ये कीतना मुश्कील काम था । मै भी कुछ मदद नही कर सकता था , कयोंकी मे तो छोटा था ना । फीर भी भैया कीसी तरह गए , वहाँ पहुँचे तो देखा , वहाँ नजारा ही कुछ और था । जो अधेड़ हमारे पीछे था ,वो और उसका लड़का भैया से बोल रहे थे ," ये चने ले जाओ , और तुम्हे और चने लगें तो लेजाओ , पहले से बता देते की तुम मास्साब के मोडा हो तो , हमतो वैसी लेजान्देते" ।
भैया ने मुझसे नजर रखने को कहा और ख़ुद खेत मे घुस कर चने तोड़ने लगे , और मे खेत की मेढ़ पर खड़ा यहाँ वहाँ देख रहा था , जहाँ भैया चने तोड़ रहे थे , उससे कुछ ही दूरी पर एक कमरा था , मैं यहाँ वहाँ देख रहा था , मेरा ध्यान खेत पर या भैया पर बिल्कुल नही था, तभी उस कमरे से धोती कुरता पहने हुए ,एक अधेड़ उम्र का व्यकती भागते हुए आया और भैया को पकड़ लीया ,इससे पहले की भैया कुछ समझ पाते उस आदमी ने २-३ हाथ भैया पर जमा दीए, और कहने लगा "चल थाने " , १२-१३ साल के लड़के के लीए थाने जाना एक बड़ा डर होता है , फीर भी भैया ने पुरी हिम्मत के साथ कहा "चल थाने ",दोनों चल पड़े थाने की ओर , मे दूर खड़े खड़े ये सब देख रहा था , मेरे कुछ समझ मे नही आरहा था की मे क्या करूं ,उस आदमी ने भैया की गदन पकड़ी हुई थी , ओर बडबडाते हुए जा रहा था ,जैसे ही उस आदमी की पकड़ ढीली पड़ी ,भैया गर्दन छुडा कर मेरे ओर भागा। उस आदमी ने मेरी ओर इशारा कर के कहा "भैया पकड़ने इहे !!!!!" मुझे कुछ सम्झ्मे नही आया वो आदमी मुझसे ऐसा क्यों कह रहा है । हम दोनों भागते हुए घर की तरफ़ बढे , चूंकी वो अधेड़ था ,ईसलिए हम से पीछे रह गया ।अब हम गेहूँ के खेत मे थे , पोधे इतने बड़े थे की हम बैठ जाने पर दीख नही रहे थे । हम दोनों ने कुछ देर चैन की साँस ली ,तभी भैया ने उठकर देखा ,वो आदमी अभी भी हमारी ही ओर आ रहा था ,और हमसे बहुत नजदीक था । कुछ दूरी पर ही घर था ,लेकिन यदीघर जाते तो पकड़े जाते और घर मे भी डांट पड़ती ,हमने रास्ता बदल दीया और रेस्ट हाऊस की तरफ़ भागे ,मुझे गेहूँ की फसल मे दोंड़ने मे दीक्कत हो रही थी , भैया ने मेरा हाथ जोर से पकड़ा और लगादी दौड़। मैं गेहूँ के पोधों के साथ साथ ऊपर नीचे होते हुए बड़े आराम से घिसट रहा था । तभी एक हादसा हो गया मेरे पैर से एक चप्पल छूट कर गेहूँ के पोधों क बीच कहीं खो गई ,मैं ने भैया से रुकने को कहा, उस वक्त तक भी ज्यादा उजाला नही हुआ था , मुझे कुछ साफ-साफ दीखाई नही दे रहा था ,तभी मुझे उस आदमी क पास आने की आवाज़ आई , वह हमारे बहुत पास आगया था ,भैया भी बोल रहे थे जल्दी कर , मैं बहुत घबरा गयाथा .मैं ने े आखरी बार हाथ घुमाया ,इश बार चप्पल मेरे हाथ मे थी, तब तक वो लगभग हमारे सामने आगया था । जैसे ही चप्पल मेरे हाथ लगी मैं चील्लाया "मील गई ",मेरा एक हाथ भैया के हाथ मे ही था , भैया तुरंत भागा ,मैं फीर से गेहूँ के साथ लहलहाता हुआ खेत के कीनारे तक पहुंचा । अब रेस्ट हाऊस की कांटों वाली फेंसींग पार करनी थी ,चप्पलें मेरे हाथ मे थी , मैने बीना चप्पल पहने ही फेंसींग पार की जिस से मेरे पैर मे हलकी खरोंच आगई, हम थोड़ा आगे बढ़ कर रुके , इश उम्मीद मे की अब शायद वो हमारे पीछे नही आरहा हो , लेकिन वो कहाँ इतनी जल्दी हार मानने वालाथा .वो हमारे पीछे इश तरह पड़ा था , जीस तरह भस्मासुर शंकर जी के पीछे भागा था . हम फीर भागे ,रेस्ट हाऊस के नजदीक भैया के दोस्त का घर था , लेकिन वहाँ जाते तो भी पकड़े जाते । हम मेन रोड पार करके एक सरकारी बीलडींग 'रेशम केन्द्र 'तक पहुँचे ,रेशम केन्द्र अभी नया नया बना था , हम बीलडींग के पीछे पहूँचकर रुके ,हमे लगा अब हम लोग सुरक्षित है , वो अब यहाँ तक तो नही आयेगा । फीर भी भैया घबरा रहा था ,शायद भैया को मेरे साथ भागने मे दिक्कत हो रही थी ,ओर बात भी सही थी ,यदी भैया अकेले होते तो कीसी तरह उससे नीपट ही लेते भैया ने मुझसे कहा तुम यहीं रुको मैं उसे देखके आता हूँ , मैं भैया का साथ छोड़ने को तैयार नही था । भैया थोडी देर तक मुझे समझाते रहे फीर भैया बोले "एक मीनीट् , मैं देखता हूँ ",एक चोडी सी दीवार के कीनारे से भैया ने झाँकने की कोशीश की ,भैया ने वहाँ वो सचमुच अनुभव कीया जो अक्सर हमारी हिन्दी फिल्मों मे कभी न कभी आप लोगों ने देखा होगा , भैया दीवार के इश तरफ़ से झांक रहे थे , और वो आदमी दीवार के उस तरफ़ से झांक रहा था , दोनों क चेहरे आमने सामने !!!!! भैया के होस उड़ गए ,भैया जोर से चिललाया "भाग चीनटू ", तभी उसने इंट का एक अद्धा उठा कर हमारी ओर फेंका ,वो सीधे मेरे पैर पार लगा लेकिन चोट नही आई , इस बार हम बहुत तेज़ी से भागे या शायद वो थक कर रुक गया था । हम लोग सीधे भैया के दोस्त के घर जाकर रुके ,हम लोगों ने चैन की साँस ली ओर २-३ घंटे रूकने के बाद अपने घर गए ,लेकिन अभी भी कुछ ओर होना बाकी था। हमारे घर पहुंचने के पहले वो ख़बर घर तक पहुँच गई थी ,पीता जी का आदत देर तक सोने की थी , और आज शायद उस आदमी ने आकार ही पीता जी को उठाया होगा , पीता जी लेटे हुए थे दरवाजे के ओर पीठ कर के मैं चुपचाप अन्दर चला गया ,अब जो भी झेलना था भैया को अकेले ही झेलना था ,कयोंकी मै तो छोटा था । पीता जी ने भैया को बहुत डांटे और जीतना थोड़ा बहुत चना हम लेके आये थे बापस करके आने को कहा ,अब भैया को उसके ही पास जाना था जीसको सुबह से अपने पीछे भगा रहे थे , कोई भी सोच सकता है , एक १२-१३ साल के लड़के के लीए ये कीतना मुश्कील काम था । मै भी कुछ मदद नही कर सकता था , कयोंकी मे तो छोटा था ना । फीर भी भैया कीसी तरह गए , वहाँ पहुँचे तो देखा , वहाँ नजारा ही कुछ और था । जो अधेड़ हमारे पीछे था ,वो और उसका लड़का भैया से बोल रहे थे ," ये चने ले जाओ , और तुम्हे और चने लगें तो लेजाओ , पहले से बता देते की तुम मास्साब के मोडा हो तो , हमतो वैसी लेजान्देते" ।
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